Friday, 14 November 2025

अलपिन की नुकीली चुभन

 मुई आँखें मानो किसी अलपिन की नुकीली चुभन लिए हों,

क़ातिल की तलाश में जाने किस मोड़ पर जेम्स बॉन्ड आ खड़ा हो,

और जब दास्तान मुकम्मल हो जाएगी, कहानी अंजाम पायेगी, 

तब अदालत की ख़ामोशी में जज भी मुस्कुराकर कहेगा- “मुकर्रर… ज़रा अफ़साना दोबारा सुनाईये।”


©®मधुमिता


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इज़हार-ए-मोहब्बत

 इज़हार-ए-मोहब्बत करोगे तुम, 

दिल आज बड़े ही सोच में है,

पहले नाक पोंछ लो यार, 

वरना वो बोलेंगी-

 “प्यार औ इज़हार बाद में, सफ़ाई पहले ज़रूरी है!"


©®मधुमिता

Saturday, 18 October 2025

ज़रा रौशन जहाँ कर लें

 हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

ज़रा रौशन जहाँ कर लें।

खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें,

खुशियों का ये जहां कर लें।


हर ओर वीरानियाँ पसरी हैं,

हर चेहरा कुछ कहता है,

उदासी की चादर ओढ़े हैं लोग,

जैसे जीना बस एक रस्म सा रह गया हो।


पर ये ज़रूरी तो नहीं कि

हम भी उस सन्नाटे में डूब जाएं।

चलिए, एक दिया जलाते हैं,

उम्मीद की रौशनी से अंधेरे को हराते हैं।


हो सकता है हरीयाली मयस्सर ना हो,

पर कुछ हरियाली हम अपने मन से बो सकते हैं।

खुशियाँ अगर दूर हैं,

तो क्यों न किसी और के चेहरे पर मुस्कान लाकर

ख़ुद की तन्हाई को भी भर दें?


एक छोटी सी मुस्कान,

एक दिल से निकला हुआ लफ्ज़,

किसी की दुनिया बदल सकता है।

तो चलिए, आज कुछ बाँट लेते हैं,

मुस्कानें, उम्मीदें, और थोड़ी सी इंसानियत।


एक ऐसा जहाँ बना लें

जहाँ हर कोई हल्का महसूस करे,

जहाँ हर दिल को थोड़ी राहत मिले,

खुशियों का उड़ता हुआ जहाँ बना लें।


©®मधुमिता

दिल की ख़ामोशी


कितनी बातें हैं, जो कही नहीं जातीं,

आँखों से बहती हैं, पर लबों तक नहीं आतीं।

हर मुस्कान के पीछे एक कहानी है,

जो किसी ने सुनी ही नहीं, बस रह गई अनकही सी, पुरानी सी।


भीड़ में भी तन्हा सा लगता है मन,

जैसे खुद से ही छूट गया हो अपनापन।

चेहरों की रौशनी में भी अंधेरे मिलते हैं,

सांसें चलती हैं पर कुछ पल ठहर से जाते हैं।


वक़्त ने बहुत कुछ छीन लिया,

कुछ लोग, कुछ सपने, कुछ भरोसे...

और हम बस देखते रह गए,

जैसे कोई मूक दर्शक अपनी ही ज़िंदगी का।


पर फिर एक दिन, दिल ने धीरे से कहा—

"क्या अब भी वही ठहराव ज़रूरी है?"

"क्या दर्द को थामे रखना ही इकलौता रास्ता है?"

"या चलें... उस तरफ़, जहाँ थोड़ी सी रौशनी बाकी है?"


तो मैंने आँसू पोंछे, और खुद से वादा किया,

कि अब हर दर्द को दुआ में बदलूंगा।

हर टूटी चीज़ को याद नहीं, सबक़ समझूंगा,

और हर उदासी के नीचे दबी एक मुस्कान को खोज लूंगा।


क्योंकि टूटना बुरा नहीं,

अगर जुड़ना शुरू हो जाए वहीं से।

और खो जाना भी डरावना नहीं,

अगर खुद को फिर से पाना शुरू कर दें वहीं से।


©®मधुमिता

हरीयाली मयस्सर होती नहीं

हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

चलो दिल को ही गुलज़ार कर लें।


जहाँ रौशन नहीं हो पा रहा,

चलो इक दीप मैं-तू झार कर लें।


खुशियाँ बाँट लें सब राहगीरों को,

मुसाफ़िर से ही त्योहार कर लें।


मुस्कानों का ये संसार रक्खें,

ग़मों का अब ना इज़हार कर लें।


अगर चाहो तो ये दुनिया सवरे,

चलो सूरत को ही सरकार कर लें।


©®मधुमिता

खुशियों का ये जहाँ कर लें


(मुखड़ा):

हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

ज़रा रौशन जहाँ कर लें।

खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें,

खुशियों का ये जहाँ कर लें।


(अंतरा 1)

उजालों की कम है चाँदनी,

दिलों में है धुआँ-सा कुछ।

चलो उम्मीद को फिर से,

बुने कोई नया-सा रुख।

बुझी-बुझी इन राहों में,

इक सपना रवाँ कर लें।

....खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...


(अंतरा 2)

सुनहरी बात हो हर रोज़ की,

ना हो शिकवा, ना हो घाव।

जहाँ हर दिल से निकले,

सिर्फ़ मीठा-मीठा भाव।

चलो नफ़रत को पीछे छोड़,

प्यारों का कारवाँ कर लें।

.....खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...


(अंतरा 3)

जो टूटी आशा बची कहीं,

उसे फिर से सजाएँ हम।

गिरे जो फूल राहों में,

उन्हें फिर से उठाएँ हम।

हर दिल को आईना बनाकर,

सच का ही बयान कर लें।

......खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें...


©®मधुमिता


#गीत

हरियाली की चाह

 

हरीयाली मयस्सर होती नहीं,

ज़रा रौशन जहाँ कर लें।


धूप छाँव के इस सफर में,

खुशियाँ बाँटें, मुस्कानें समेटें।


मन के वीरान को भी आज,

सुकून-ए-बसंत का पैग़ाम दें।


छोटे-छोटे रंगों में रंग जाए,

हर दिल का सूना आँगन।


ना हो कहीं कोई उदासी,

ना बचे कोई छुपा ग़म।


चलो मिलकर कोई नई राह बनाएँ,

जहाँ खुशियों का ये जहाँ कर लें।


©®मधुमिता